स्वामी विवेकानंद : शिकागो भाषण, सितंबर 1893

  • स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1893 मे शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में हिंदू सन्यासी के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया।
  • उस समय स्वामी जी की आयु 30 वर्ष थी, इतनी कम आयु में भी उनके भाषण से लोग इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सम्मलेन के अगले पखवाड़े में पांच बार बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। उनके भाषण की अगली सुबह को प्रकाशित न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा- “विवेकानंद निस्संदेह धर्म संसद में सबसे बड़े व्यक्ति हैं।”
  • इस भाषण की शुरुआत उन्होंने “sisters and brothers of America,” से की थी और उसके बाद उन्होंने हिंदुओं की ओर से आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपने भाषण के आरंभ में ही कहा- ‘आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है और मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।’
  • यह भाषण मात्र 468 शब्दों का था, इतने कम समय के अपने भाषण में भी स्वामी जी ने विश्व स्तर की छाप छोड़ी – “मुझे ऐसे धर्म पर गर्व है, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों को सिखाया है।” इसे उन्होने हिंदू धर्म का मूल माना, और उन्होंने इसे सबसे मूल्यवान तत्व बताया। उन्होने कहा “हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सच मानते हैं। मुझे ऐसे देश पर गर्व है, जिसने सभी धर्मों और पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के सताए हुए और शरणार्थियों को शरण दी है भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्रोत्त की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

“जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।“

  • उन्होने धर्म संसंद में जो कुछ बोला वह उनके अनुभव और उनकी अपनी आत्मा के अन्तःकरण से निकली हुई वाणी थी। उन्होंने अपने भाषण में जो बोला, उसने वहाँ उपस्थित दर्शकों को भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्त्व पर चिंतन करने के लिए प्रेरणा दी। उनके उद्बोधन ने उनसे पहले बोलने वाले कई वक्ताओं को भी प्रभावित किया।
  • स्वामी विवेकानंद ने कहा कि -“सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है। न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए।” यदि ये भयावह राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा श्रेष्ठतर होता, जितना कि अभी है लेकिन उनका समय अब पूरा हो चुका है। मुझे आशा है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा। चाहे वह तलवार से हो या फिर लेखनी से।
  • स्वामी विवेकानंद अपने छोटे जीवन में जिस कार्य और संदेश का संचार किया, उससे सम्पूर्ण विश्व आश्चर्यचकित होकर रह जाता है कि ऐसे व्यक्ति ने इस राष्ट्र की भूमि मे जन्म लिया था और यहाँ की पगडंडियों पर ही चला था। निःसन्देह स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू थे और उन्हें हिन्दू होने पर गर्व था। किन्तु उनके दर्शन ने धर्म के जिस स्वरूप को प्रसारित किया उसके केंद्र में मनुष्य था और उनका मौलिक योगदान यह है कि उन्होंने मनुष्य निर्माण की सर्वोत्तम विधा के रूप में ‘हिन्दुत्व’ को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।

 

  • विश्व धर्म संसद में विश्व भर के प्रमुख धर्मों के प्रतिनिधि थे जिनमें हिंदू धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, पारसी, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट इत्यादि सम्मिलित हुए। किन्तु स्वामी जी का उद्बोधन सबसे सफल रहा।
  • स्वामी विवेकानंद के अनुसार- मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं।
  • साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे-पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होते, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता।
  • हिन्दू जाति ने अपना धर्म श्रुति — वेदों से प्राप्त किया हैं। उसकी धारणा हैं कि वेद अनादि और अनन्त हैं। सम्भव हैं, श्रोताओ को यह बात हास्यास्पद लगे कि कोई पुस्तक अनादि और अनन्त कैसे हो सकती हैं। किन्तु वेदों का अर्थ कोई पुस्तक हैं ही नहीं। वेदों का अर्थ हैं, भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष।
  • वेद कहते हैं कि आत्मा दिव्यस्वरूप हैं, वह केवल पंचभूतों के बन्धन में बँध गयी हैं और उन बन्धनों के टूटने पर वह अपने पूर्णत्व को प्राप्त कर लेगीं।
  • और यह बन्धन केवल ईश्वर की दया से ही टूट सकता हैं और वह दया पवित्र लोगों को ही प्राप्त होती हैं। अतएव पवित्रता ही उसके अनुग्रह की प्राप्ति का उपाय हैं। उसकी दया किस प्रकार काम करती हैं? वह पवित्र हृदय में अपने को प्रकाशित करता हैं। पवित्र और निर्मल मनुष्य इसी जीवन में ईश्वर दर्शन प्राप्त कर कृतार्थ हो जाता हैं।

शिकागो भाषण : वैश्विक स्तर पर हिन्दुत्त्व की गूंज (ग्लोबल आउटरीच ऑफ़ हिन्दुत्त्व)

  • स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण ने ‘हिन्दुत्त्व’ का भाव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया और इस भाषण में उन्होंने हिंदू धर्म की महान सांस्कृतिक परंपरा पर प्रकाश डाला।
  • उन्होंने हिन्दू धर्म को एक सार्वभौमिक धर्म के रूप में प्रस्तुत किया, जो सभी धर्मों, मान्यताओं, सम्प्रदायों और विश्वासों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है। उनका कहना था कि हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जो विभिन्न पंथों और विश्वासों को एक ही सत्य की ओर ले जाने वाले विविध रास्ते मानता है। उन्होंने हिंदू धर्म की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए बताया कि इसमें सहिष्णुता, मानवता, और सबका सम्मान करने की भावना निहित है।
  • उन्होंने हिन्दू धर्म की अनूठी विशेषता को इस रूप में प्रस्तुत किया कि यह मानवता के भाव को सर्वोपरि मानता है और ‘वसुधैव कुटुंब’ का भाव इसमें समाहित है। इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि हिंदुत्व किसी एक विशिष्ट जाति या पंथ का नहीं है, बल्कि यह सभी को एकता और भाईचारे के मार्ग पर चलने का आह्वान करता है।
  • स्वामी विवेकानंद के इस भाषण ने पश्चिमी दुनिया को हिंदू धर्म की गहराई और उसकी सार्वभौमिकता के बारे में एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हिन्दू धर्म केवल एक सांस्कृतिक या धार्मिक पहचान नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण है जो सभी मानवता को एकजुट करने का प्रयास करता है।
  • स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण विश्वभर में हिंदू धर्म की एक नई छवि प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण रहा। इस भाषण में उन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों और उनके सार्वभौमिक महत्व पर गहराई से प्रकाश डाला –
  • हिंदुत्व की व्यापकता और समावेशिता : स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की एक सार्वभौमिक दृष्टि प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म किसी एक जाति, संस्कृति या भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इसके बजाय, यह एक ऐसी प्रणाली है जो सभी धर्मों, जातियों और संस्कृतियों को स्वीकार करती है और उनमें समन्वय स्थापित करती है। उन्होंने हिंदू धर्म के समावेशी दृष्टिकोण को बताते हुए कहा कि इसमें विभिन्न धार्मिक मार्गों को एक ही सत्य की ओर ले जाने के विविध रास्ते माना जाता है।
  • धर्म की परिभाषा : स्वामी विवेकानंद ने धर्म की एक अद्वितीय परिभाषा दी। उनके अनुसार, धर्म केवल पूजा या अनुष्ठान तक सीमित नहीं है। उन्होंने इसे जीवन के उद्दीपन, मानवता की सेवा, और आत्मा की खोज के रूप में देखा। उन्होंने हिंदू धर्म को एक ऐसा मार्ग बताया जो आत्मा की अनन्तता और मानवता के आदर्शों की खोज में मदद करता है।
  • सहिष्णुता और सबका सम्मान : हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू सहिष्णुता और विभिन्न धार्मिक विश्वासों के प्रति सम्मान है। स्वामी विवेकानंद ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म सभी धर्मों की समानता और उनके प्रति सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है। उन्होंने उदाहरण के रूप में भारतीय समाज को पेश किया, जिसमें विभिन्न धर्मों और विश्वासों का सह-अस्तित्व है।
  • वैश्विक मानवता और एकता : स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को वैश्विक मानवता की एकता और भाईचारे के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने यह तर्क किया कि हिंदू धर्म का सिद्धांत सभी मनुष्यों की एकता, मानवता और सार्वभौमिक प्रेम की ओर ले जाता है। उनके अनुसार, हिन्दू धर्म मानवता के एक बड़े परिवार की अवधारणा को मानता है, जहां सभी जीव एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी हैं।
  • हिन्दू धर्म : एक जीवन दृष्टि : स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को केवल धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि एक जीवनदृष्टि के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इसे आदर्शों और मूल्यों की एक प्रणाली के रूप में देखा जो समाज को सही दिशा प्रदान करती है और व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करता है।

शिकागो भाषण : विश्व बन्धुत्त्व का सन्देश

  • स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण विश्व बन्धुत्व और सार्वभौमिक मानवता के महत्व को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश था। इस भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भारत की धार्मिक विविधता और सार्वभौमिकता का उदाहरण दिया और विश्व को एकता, सहिष्णुता और परस्पर सम्मान की आवश्यकता का आह्वान किया।
  • उन्होंने अपने भाषण में विश्व बन्धुत्व का भाव व्यक्त करते हुए कहा कि सभी धर्मों की मूल भावना एक ही है और सभी मानवता एक परिवार की तरह हैं। स्वामी विवेकानंद ने यह भी बताया कि विभिन्न धर्मों के बीच मतभेद नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सभी धर्मों की आपसी समझ और सम्मान से सुलझाए जाने चाहिए। उनका यह संदेश था कि सभी धर्म, संस्कृतियाँ और जातियाँ एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता और समझ विकसित करें, ताकि विश्व में शांति और एकता बनी रहे।
  • उनके इस भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय संस्कृति और विचारधारा से परिचित कराया और उनके विचार आज भी अंतरराष्ट्रीय संवाद और सांस्कृतिक समझ में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में देखे जाते हैं। स्वामी विवेकानंद ने जो विश्व बन्धुत्व का भाव व्यक्त किया, वह आज भी मानवता के लिए एक प्रेरणादायक संदेश बना हुआ है।
  • यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है उनके दर्शन और शब्दों का प्रयोग सभी मानवों के कल्याण के लिए हो और प्रत्येक भारतवासी उनके आदर्शों के माध्यम से अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति गौरवबोध का अनुभव कर सकें।

शिकागो भाषण के बाद अमेरिकी नागरिकों के बीच स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता

स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण के बाद The Indiana State Sentinel ने 13 सितंबर 1893 को लिखा कि शिकागो में एक Significant Gathering हो रही है जिसमें दुनियाभर के विचारों का प्रतिनिधित्व होगा समाचार-पत्र ने स्वामी विवेकानंद का नाम प्रकाशित कर बताया कि वह Orthodox Brahminical Society of India के सचिव नाते इस Parliament of Religions में शामिल हुए है-

ऐसे ही 14 सितम्बर 1893 को The Austin Weekly Statesman ने लिखा कि शिकागो में Representatives of the Leading Religions of the World एकजुट हो रहे है, जिसमें भारत से स्वामी विवेकानंद भी हिस्सा ले रहे है-

 

स्वामी जी के शिकागो में ऐतिहासिक भाषण के बाद उनका और भारतीय संस्कृति का अमेरिका के नागरिकों पर गहरा प्रभाव पड़ने लगा था।

San Francisco से प्रकाशित होने वाले The Morning Call ने 10 दिसंबर 1893 को लिखा कि “Mr. Swami Vivekananda, one of the representatives of Hinduism at the Parliament of Religions, is still in Chicago lecturing under the auspices of some lecture bureau. He is master of the English language and attractive in every day.” –

इसके बाद स्वामी जी अमेरिका में तेजी से लोकप्रिय होने लगे, जिसका एक उदाहरण The Herald के 21 अगस्त 1898 को प्रकाशित अंक में मिलता है| समाचार-पत्र ने स्वामी जी के नाम के आगे famous Vivekananda लिखा

ऐसे ही The Advocate and News ने 15 फरवरी 1899 को एक अमेरिकी नागरिक मेरी फ्रांसिस के हवाले से लिखा, “Swami Vivekananda, the most intellectual of all the oriental scholars who came here.”

स्वामी जी अमेरिका में इतने लोकप्रिय हो गए कि उनके किसी भी लेक्चर की खबर अमेरिकी समाचार-पत्रों में भी प्रकाशित होने लगी थी. ऐसी ही एक खबर The San Francisco Call ने 3 मार्च 1900 को प्रकाशित की, “Swami Vivekananda, the Hindu monk who represented the religion of India at World’s fair, will lecture on Sunday, March 4 at 3 p.m. at Golden Gate Hall, 625 Sutter Street; subject, The Science of Religion. Admission free.” (6)

स्वामी जी को हिन्दू धर्म पर लेक्चर्स को अमेरिकी नागरिकों ने बेहद पसंद किया, इसलिए The San Francisco Call ने 16 मार्च 1900 लिखा, “The lecture by Swami Vivekananda was given last evening at Washington Hall, 320 Post Street. The discourse was on ‘Mind Culture’ and was extremely interesting. Vivekananda impressed his listeners.” (7)

The Washington Times ने 18 दिसंबर 1901 के अपने अंक में भारतीय वेदांत दर्शन पर पूरा एक पृष्ठ प्रकशित किया था, जिसके अंतर्गत समाचार-पत्र ने स्वामी जी का एक फोटो भी प्रकाशित किया और लिखा, “Only a decade ago Swami Vivekananda came from the Far East to attend the congress of religions at the Chicago World’s Fair. Since the stirring address delivered by Swami Vivekananda in Chicago, Vedanta has gradually gained a footing in the United States.”

हालांकि स्वामी विवेकानंद का जीवन अल्पायु का रहा और उनका निधन 4 जुलाई 1902 को हो गया, जिसके बाद दर्जनों अमेरिकी समाचार-पत्रों ने इस दुखद खबर की सूचना प्रकाशित की. The Jennings Daily ने 8 अगस्त 1902 को स्वामी जी ने निधन की सूचना देते हुए लिखा, “Death of Famous Hindu. Swami Vivekananda had thought philosophy in America.” The Swami drew great crowds to his meetings and religious leaders were of the belief that he would create a cult with a large following if he continued. His teachings were deeply philosophical abnd his method of expressing them clear and concise. He was man of great personal magnetism and with his succinct thought and language succeeded in making his influence felt.”

The Washington Times ने तो 13 सितंबर 1902 को अंग्रेजी में एक कविता प्रकाशित की, जिसका शीर्षक ‘Tribute to Vivekananda’ रखा.

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण एक ऐतिहासिक पल था जिसने हिंदू धर्म को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और उसके सार्वभौमिक, समावेशी और मानवीय पहलुओं को उजागर किया। उनका यह भाषण आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक संवाद में एक महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में देखा जाता है।

सन्दर्भ-ग्रन्थ

  1. विवेकानन्द साहित्य संचयन, रामकृष्ण मठ, नागपुर
  2. द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद, 9 खंड कलकत्ता: अद्वैत आश्रम, 1997
  3. The World’s Parliament of Religions, Edited by The Rev. John Henry Barrows, D.D., Volume -1, The lakeside Press, R.R. Donnelley & Sons co., Chicago.
  4. The Indiana State Sentinel, 13 September,1893
  5. The Washington Times, 18 दिसंबर, 1901

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *