सुब्रमण्य भारती जयंती – 11 दिसंबर 1882

संक्षिप्त परिचय

यद्यपि लेखक, कवि, पत्रकार, भारतीय स्वतंत्रता के कार्यकर्ता, समाज सुधारक और बहुभाषाविद सुब्रमण्यम भारती का जीवन काल मात्र 39 वर्ष का ही रहा किन्तु इस अल्पकाल में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी, कवि, सामाजिक और आध्यात्मिक सुधारक के रूप में जो योगदान दिया, वह अनुकरणीय और वंदनीय है। भारत के लिए उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियों द्वारा सदैव स्मरण किया जाएगा ।

जब स्वतंत्रता आंदोलन अपने शिखर पर था, उन्होंने उस समय न केवल देशभक्ति की मशाल जलाई बल्कि अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से मानव जीवन के हर पहलू को स्पर्श किया जो समाज के पुनरुत्थान और उत्तरोत्तर विकास के लिए आवश्यक थे। सुब्रमण्य भारती गद्य और काव्य दोनों रूपों में विपुल और कुशल थे। उनकी रचनाओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जनता को एकजुट करने में सहायता  की। उनकी  रचनाओं में समग्रता, प्रभावोत्पादकता, व्यापक दृष्टि तथा राष्ट्र के प्रति अनन्य प्रेम के कारण उन्हे सम्मान से “महाकवि भारथियार ” के नाम से जाना जाता है।

सुब्रमण्य भारती का जीवन भारतीय इतिहास के उस महत्वपूर्ण कालखंड का साक्षी है जब बाल गंगाधर तिलक, श्री अरबिंदो वीवीएस अय्यर, गांधी  जैसे लोग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे और भारती जी ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति को आगे बढ़ाया।

प्रमुख बिंदु

  • तमिल दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेशमित्रन’ का सम्पादन (1904)
  • ‘भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस’ (INC) के गरम दल के सदस्य ।
  • सुब्रमण्यम भारती ने अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने हेतु लाल कागज़ पर ‘इंडिया’ नाम का साप्ताहिक समाचार पत्र छापा।यह तमिलनाडु में राजनीतिक कार्टून प्रकाशित करने वाला पहला पेपर था।
  • तमिल पत्रिका ‘विजय’ पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन
  • कॉन्ग्रेस के वार्षिक सत्रों में सहभागिता
  • बिपिन चंद्र पाल, बी.जी. तिलक तथा वी.वी.एस. अय्यर जैसे उग्र राष्ट्रवादी नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा में भागीदारी
  • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के बनारस सत्र (1905) और सूरत सत्र (1907) के दौरान उनकी भागीदारी एवं देशभक्ति के प्रति उनके उत्साह ने कई राष्ट्रीय नेताओं को प्रभावित किया।
  • सुब्रह्मण्य भारती का प्रिय गान बंकिम चन्द्र का वन्दे मातरम् था। यह गान उनका जीवन प्राण बन गया था। उन्होंने इस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा।
  • वर्ष 1908 में उन्होंने ‘स्वदेश गीतांगल’ प्रकाशित किया।
  • वर्ष 1917 की रूसी क्रांति को लेकर सुब्रमण्य भारती की प्रतिक्रिया ‘पुड़िया रूस’ (द न्यू रशिया) नामक कविता मौजूद है, जो कि उनके राजनीतिक दर्शन का एक आकर्षक उदाहरण प्रस्तुत करती है।
  • ब्रिटिश सरकार उनसे इतना घबराई हुई थी कि पुलिस से बचने के लिए उन्हे फ्राँसीसी उपनिवेश ‘पांडिचेरी’ (अब पुद्दुचेरी) जाने के लिये विवश होना पड़ा, जहाँ वे वर्ष 1910 से वर्ष 1919 तक निर्वासन में रहे।
  • इस अवधि के दौरान सुब्रमण्य भारती की लिखी राष्ट्रवादी कविताएँ और निबंध काफी लोकप्रिय थे।
  • महत्त्वपूर्ण रचनाएँ: ‘कण पाणु’ (वर्ष 1917; कृष्ण के लिये गीत), ‘पांचाली सपथम’ (वर्ष 1912; पांचाली का व्रत), ‘कुयिल पाउ’ (वर्ष 1912; कुयिल का गीत), ‘पुड़िया रूस’ और ‘ज्ञानारथम’ (ज्ञान का रथ)।
  • उनकी कई अंग्रेज़ी कृतियों को ‘अग्नि’ और अन्य कविताओं तथा अनुवादों एवं निबंधों व अन्य गद्य अंशों (1937) में संकलन किया गया ।

प्रारंभिक जीवन

भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को एट्टायपुरम के तमिल गांव में चिन्नासामी सुब्रमण्य अय्यर और इलाक्कुमी (लक्ष्मी) अम्माल के रूप में “सुब्बाय्या” के रूप में हुआ था। सुब्रमण्य भारती की शिक्षा तिरुनेलवेली में “द एमडीटी हिंदू कॉलेज” नामक एक स्थानीय हाई स्कूल में हुई थी।

उन्होंने बहुत कम आयु में संगीत सीख लिया था और उन्हे 11 साल की आयु में कविताओं और गीतों की रचना के लिए एट्टायपुरम दरबारी कवियों और संगीतकारों के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था। यहीं पर उन्हें “भारती” (विद्या की देवी सरस्वती द्वारा धन्य) की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

सुब्रमण्य भारती ने 5 साल की उम्र में अपनी मां और 16 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। उनका पालन-पोषण उनके पालक पिता ने किया था, जो चाहते थे कि वह अंग्रेजी सीखें, अंकगणित में उत्कृष्टता प्राप्त करें, एक इंजीनियर बनें और एक आरामदायक जीवन व्यतीत करें। हालाँकि, सुब्रमण्य भारती को सपने देखने के लिए दिया गया था किन्तु वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सके । उनमें जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए, उनके पिता ने 14 वर्षीय भारती का विवाह चेल्लम्मा से करा दिया , जो मात्र सात साल की थी।

इस आरंभिक विवाह संस्कार के बाद बाहरी दुनिया को देखने के लिए उत्सुक सुब्रमण्य भारती 1898 में बनारस के लिए प्रस्थान कर गए। उन्होंने जीवन के अगले चार वर्षों को जीवन मार्ग की खोज में लगाया। भारती ने मदुरै सेतुपति हाई स्कूल (अब एक उच्च माध्यमिक विद्यालय) में एक शिक्षक के रूप में कार्य किया और पत्र पत्रिकाओं के संपादक के रूप में काम किया।

कार्य एवं विचार

अपने बनारस (काशी और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है) प्रवास के दौरान, भारती हिंदू आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद के संपर्क में आए । इससे उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ और सुब्रमण्य भारती ने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी सीखी। इसके अलावा, भारती ने अपना बाहरी रूप बदल दिया।

ऐसा माना जाता है कि भारती हिंदुओं द्वारा पहनी जाने वाली पगड़ी की परंपरा बहुत से प्रभावित थे (भारतीय समाज में पगड़ी राजाओं द्वारा पहने जाने वाले मुकुटों का प्रतिनिधित्व करती थी) और उन्होंने इस भेष भूषा को अपना लिया।

उनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद आरंभ से ही प्रमुख तत्व रहा किन्तु जहाँ उनकी प्रारंभिक कविताओं में तमिल राष्ट्रवाद की प्रमुखता थी , वह स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के बाद उत्तरार्ध में भारतीय हिन्दू राष्ट्रवाद के व्यापक स्वरूप में परिवर्तित हो गया । उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ। देशभक्ति से ओतप्रोत स्वामीजी के भाषणों द्वारा पैदा की गई विचारों की चिंगारी का प्रभाव महाकवि भारती पर ही नहीं बल्कि वीर सावरकर तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रभक्तों पर भी दिखाई देता है।

भारती ने रूढ़िवादी दक्षिण भारतीय समाज की सामाजिक वर्जनाओं और अंधविश्वासों से परे देखना शुरू कर दिया। दिसंबर 1905 में, भारती ने बनारस में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। घर वापस जाने के दौरान, उनकी भेंट विवेकानंद की आध्यात्मिक शिष्या भगिनी निवेदिता से हुई। उसके बाद भारती के मन में महिलाओं के विशेषाधिकारों को स्वीकार्यता दिलाने का संकल्प विकसित हुआ।

भगिनी निवेदिता के महिलाओं उत्थान कार्य ने भारती के मस्तिष्क को बहुत प्रभावित किया। भारती ने ‘आधुनिक  महिला’ को शक्ति के एक उत्सर्जन केंद्र के रूप में देखा, जो आगे चलकर सहकारी प्रयास के माध्यम से एक नए विश्व के निर्माण में सहायक होगी।

इस अवधि के दौरान, भारती ने बाहरी दुनिया से अच्छी तरह से अवगत होने की आवश्यकता को समझा और पत्रकारिता की दुनिया और पश्चिम के प्रिंट मीडिया में रुचि ली। भारती 1904 में एक तमिल दैनिक स्वदेशमित्रन के सहायक संपादक के रूप में कार्य संभाला।

अप्रैल 1907 तक, भारती ने एमपीटी में आचार्य के साथ तमिल साप्ताहिक इंडिया और अंग्रेजी अखबार बाल भारतम का संपादन शुरू कर दिया। ये समाचार पत्र भारती की रचनात्मकता को व्यक्त करने का एक साधन भी थे, जो इस अवधि के दौरान चरम पर पहुंचने लगे। भारती ने इन संस्करणों में अपनी कविताओं को नियमित रूप से प्रकाशित करना शुरू किया।

धार्मिक भजनों से लेकर राष्ट्रवादी गान तक, ईश्वर और मनुष्य के बीच संबंधों पर चिंतन से लेकर रूसी और फ्रांसीसी क्रांतियों पर गीतों तक, भारती के लेखन के विविध विषय थे। भारती दलित लोगों के साथ दुर्व्यवहार और भारत पर कब्जा करने के लिए अंग्रेजों के साथ-साथ समाज के विरुद्ध थे।

भारती ने 1907 में ऐतिहासिक सूरत कांग्रेस में भाग लिया था , जिसके बाद तिलक और अरबिंदो के नेतृत्व वाले उग्र तथा अंग्रेजों के प्रति नरम रुख रखने वाले लोगों के बीच विभाजन और भी गहरा हो गया। भारती ने वी. ओ.  चिदंबरम पिल्लई और कांची वरथाचरियार के साथ मिलकर तिलक और अरबिंदो का समर्थन किया। तिलक ने खुले तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध का समर्थन किया।

भारती ने स्वयं को लेखन और राजनीतिक गतिविधियों में डुबो दिया। मद्रास में, 1908 में, भारती ने स्वराज (स्वतंत्रता) दिवस मनाने के लिए एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया। उनकी राष्ट्रवादी कविताएँ वन्थे मातरम, एन्थयुम थायूम और जय भारत को छापा गया और दर्शकों को मुफ्त में वितरित किया गया। भारती को भारत का राष्ट्रीय कवि कहा जाता है।

1908 में, भारती ने उस मामले में साक्ष्य प्रस्तुत किया जो अंग्रेजों द्वारा वी ओ चिदंबरम पिल्लई के विरुद्ध लगाए गए थे । उसी वर्ष, पत्रिका के मालिक को मद्रास में गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी की संभावना देखते हुए भारती पांडिचेरी चले गए जो उस समय फ्रांसीसी शासन के अधीन था।

वहां से उन्होंने साप्ताहिक पत्रिका इंडिया, एक तमिल दैनिक विजया, एक अंग्रेजी मासिक बाल भारत, और पांडिचेरी के एक स्थानीय साप्ताहिक सूर्योथायम का संपादन और प्रकाशन किया। अँग्रेजों ने भेजे जाने वाले धन और पत्रों को रोककर भारती के पत्र पत्रिकाओं के उत्पादन को कुचलने का प्रयास किया । 1909 में ब्रिटिश भारत में इंडिया और विजया दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया ।

अपने निर्वासन के दौरान, भारती को स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी शाखा  के कई अन्य नेताओं जैसे अरबिंदो, लाजपत राय और वीवीएस अय्यर के साथ घुलने-मिलने का अवसर मिला, जिन्होंने फ्रांसीसी अधिकार क्षेत्र में शरण भी मांगी थी। भारती ने आर्य पत्रिका में अरबिंदो और बाद में पांडिचेरी में कर्म योगी की सहायता की।

भारती ने नवंबर 1918 में कुड्डालोर के पास ब्रिटिश भारत में प्रवेश किया और उन्हे  तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। भारती को 20 नवंबर से 14 दिसंबर तक तीन सप्ताह के लिए कुड्डालोर की केंद्रीय जेल में कैद किया गया था। अगले वर्ष भारती की मुलाकात मोहनदास करमचंद गांधी से भी हुई।

उनकी कविताओं ने एक प्रगतिशील, सुधारवादी आदर्श से ओतप्रोत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वर व्यक्त किया। उनकी कल्पना और उनके पद्य की ताक़त कई अर्थों में तमिल संस्कृति का प्रतीक है। भारथियार ने महिलाओं के लिए अधिक स्वतंत्रता और सम्मान की प्रसिद्ध वकालत की:

“हम नारीत्व को कुख्यात करने की मूर्खता को नष्ट कर देंगे “

भारती ने हिंदू समाज में व्याप्त जातीय भेदभाव के विरुद्ध भी लड़ाई लड़ी। हालांकि उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में ही हुआ था किन्तु उन्होंने अपनी जाति की पहचान छोड़ दी थी । उनकी एक प्रसिद्ध तमिल उक्ति थी जिसका हिन्दी में है , ‘इस् संसार में केवल दो जातियां हैं: एक जो शिक्षित है और दूसरे वे जो नहीं है।’

भारती ने सभी जीवों को समान माना और इसे स्पष्ट करने के लिए उन्होंने एक युवा हरिजन का उपनयनम संस्कार भी किया और उसे ब्राह्मण बना दिया। भारती ने अपने समय के दौरान अपने बुजुर्ग शिक्षकों द्वारा युवा पीढ़ियों में बांटी जा रही विभाजनकारी प्रवृत्तियों का भी तिरस्कार किया।

भारती ने वेद और गीता पढ़ाते समय अपने व्यक्तिगत विचारों को मिलाने के लिए प्रचारकों की खुले तौर पर आलोचना की।

भाषा

भारती अपनी मातृभाषा तमिल भाषा के प्रति समर्पित थे और उन्हें अपनी विरासत पर गर्व था। भारती तेलुगु, बंगाली, हिंदी, संस्कृत, कच्छी, फ्रेंच और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में पारंगत थे और अन्य भाषाओं से तमिल में अनुवाद करते थे। भारती को प्राचीन और समकालीन तमिल साहित्य विशेषकर प्राचीन कविताओं को सीखने की तीव्र भूख थी।

तमिल साहित्य में भारती

भारती तमिल कविता की एक नई शैली को प्रस्तुत  करने में अग्रणी थे। तब तक कविताओं को प्राचीन तमिल व्याकरणिक ग्रंथ तोल्काप्पियम द्वारा निर्धारित सख्त वाक्य-विन्यास नियमों का पालन करना पड़ता था। भारती ने इस वाक्य-विन्यास के बंधन को तोड़ा और एक गद्य-काव्य शैली का निर्माण किया जिसे पुथुक्कविथाई (आधुनिक कविता) के रूप में जाना जाता है।

काव्य अनुवाद

कुयिल पट्टू – शुज़ो मत्सुनागा द्वारा जापानी में अनुवादित (8 अक्टूबर 1983)।

मृत्यु

भारती मद्रास के तिरुवेलकेनी स्थित पार्थसारथी मंदिर जाते थे और मंदिर के हाथी को चारा खिलाते थे। एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन जब भारती खाना खिलाने गए तो हाथी ने उस पर हमला कर दिया। भारती के पैर और सिर पर चोटें आईं। हाथी के हमले के बाद हालांकि वह जीवित बच गए किन्तु उससे वह कभी उबर नहीं पाए। महाकवि सुब्रमण्यम भारती ने 39 वर्ष की आयु में 11 सितंबर 1921 को भगवान के श्री कमल चरणों में विलीन हो गए

भारती के कुछ उल्लेखनीय कार्य पंजाली सपथम, कन्नन पट्टु , कुयिल पट्टु , पतंजलि योग सूत्र का अनुवाद, भगवद गीता का अनुवाद, चिन्नाचरू किलिये, विनायकर नानमनीमलाई, विद्युततलाई पडल, ग्वाना पडल और कई अन्य हैं ।

“द्रविड़” विमर्श और भारती

द्रविड़ विमर्श के कथित विद्वान आजकल भारती को ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह ब्राह्मण समुदाय और हिंदू धर्म के विरुद्ध थे। जबकि भारती वास्तव में केवल छुआछूत और महिलाओं के साथ भेदभाव जैसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं के विरुद्ध थे। भारती देवी काली के अनन्य भक्त थे  और उन्होंने देवी की स्तुति करते हुए कई कविताओं की रचना की थी। उन्ही के शब्दों में —

मनदिलुरुदि वेण्डुम्

वाक्किनिले इनिमै वेण्डुम्

निनैवु नल्लदु वेण्डुम्

नेरुंगिन पोरुष कैप्पड वेण्डुम्।

(कविक्कुयिल भारतीयार, पृ.सं. 129)

हे माता! मुझे इतना उत्कृष्ट बनाओ ताकि मैं धन मन विवेक से कर्म कर सकूँ, तथा मुझे दृढ़ हृदय चाहिए, उसके साथ मेरे वचन में मिठास भर देना, मेरा चिंतन सदैव सही मार्ग पर हो और जिस वस्तु की कामना मैं करता हूँ वो मुझे उपलब्ध हो, ऐसा वरदान मुझे देना!”

कवि भारती महाशक्ति काली से पूछते हैं “इतना विवेक के साथ मेरा सर्जन इस धरती पर क्यों हुआ!” सनातन ज्ञान परंपरा के ही समान उनकी दूरदर्शिता क्षेत्र और देश को पार पूरे संसार को स्पर्श करती है । उनके लिए सारा संसार एक परिवार समान है और पूरा विश्व आपस में भाई भाई है।

इसी प्रकार मद्रास में अपने निवास के दिनों में वह भगवान विष्णु को समर्पित पार्थसारथी मंदिर के लगातार आगंतुक हुआ करते थे। इन सब बातों के उपरांत भी द्रविड़ विचारक अब अपने दुष्प्रचार में उनको समायोजित करने के लिए उनके मूल आदर्शों को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश कर रहे हैं ।

सम्मान और मान्यता

भारत सरकार ने 1987 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय ) के साथ सर्वोच्च राष्ट्रीय सुब्रमण्य भारती पुरस्कार की स्थापना की, जो हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट कार्यों के लेखकों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है

कोयंबटूर में एक राज्य विश्वविद्यालय का नाम कवि के नाम पर भारथियार विश्वविद्यालय रखा गया है। सुब्रमण्यम भारती का स्मारक डाक टिकट भी उनके सम्मान में भारतीय डाक द्वारा जारी किया गया था।

वा .रा.  ने “महाकवि भारती” पर एक तमिल जीवनी लिखी। जिसे पहली बार 1933-1934 में ‘गांधी’ पत्रिका में क्रमबद्ध किया गया था और बाद में 1944 में शक्ति कार्यालयम् द्वारा एक पुस्तक के रूप में संशोधित और प्रकाशित किया गया था।

उनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय काशी के तमिल अध्ययन में सुब्रमण्यम भारती चेयर की स्थापना की घोषणा की है ।

सारांश

सुब्रमण्यम भारती आधुनिक तमिल कविता के जनक हैं। उनकी कविताएं और साहित्यिक कृतियां केवल स्वतंत्रता के विचारों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने उनके समय में प्रचलित सभी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक समाज सुधारक के रूप में अपनी भावनाओं को प्रतिध्वनित किया गया था । आध्यात्मिक दार्शनिक के रूप में उन्होंने भगवद्गीता का तमिल में अनुवाद किया और बच्चों के लिए कई कविताएं लिखीं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है उन्होंने मानव जीवन के हर पहलुओं को कवि के रूप में छुआ। उनकी कविताएं एक प्रकार का दृष्टि अभिलेख हैं कि भारत को कितना और किस प्रकार स्वतंत्र होना चाहिए और यही कारण है कि उन्हे आज तक उत्सव के साथ स्मरण किया जाता है और आगे भी किया जाता रहेगा।

संदर्भ :

https://pibindia.wordpress.com/2016/08/24/role-of-chinnaswami-subramania-bharathi-in-freedom-struggle/

Bharati. 1984. Subramania Bharati: Chosen Poems and Prose. English Renderings of a Selection from the Tamil Writings of Subramania Bharati (ed. K. Swaminathan). New Delhi: All-India Subramania Bharati Centenary Celebrations Committee.

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