बाराबंकी. बरेठी में नारायण सेवा संस्थान के लक्ष्मी नारायण मंदिर के लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि हमारे मन्दिर मात्र पुण्य कमाने अर्थात माँगने का स्थान नहीं, बल्कि अन्तर्चेतना जागृति का केन्द्र है। मन्दिर मनुष्य के अंदर की चेतना को जागृत रखने से लेकर दूसरे के कष्ट को दूर करने, लोगों की सेवा करने का भाव जगाता है।
सरकार्यवाह जी ने कोरोना महामारी का उल्लेख करते हुए कहा कि संकट काल में कई बार अच्छे काम भी सृजित हो जाते हैं। कुछ समय पूर्व मानवता के सामने आयी महामारी कोरोना के समय लोगों की सेवा करने, रोजगार देने का काम कई संस्थाओं ने किया। संघ के स्वयंसेवकों ने भी उस समय लोगों को सेवाएं देने का काम किया। उसी से प्रेरणा लेकर कुछ समय बाद ‘नारायण संस्था’ बनी, जिसके परिसर में आज हम उपस्थित हैं।
उन्होंने कहा कि समाज में कार्य करने वाली कोई भी संस्था अपने बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि उसको चलाने वालों के मन, बड़प्पन और कार्यों से बड़ी होती है। कोरोना काल से शुरु हुई संस्था न्यास बन गई, इस गांव में अन्यान्य कार्य करते हुए मंदिर स्थापना हुई।
मन्दिर निर्माण का उल्लेख करते हुए कहा कि मंदिर अन्तर्चेतना जागृत करने के लिए हैं। किसी ने पूछा, ईश्वर जड़-चेतन में हैं, सर्वत्र हैं, तो मंदिर में जाकर ही पूजा क्यों करना? तो एक भक्त ने उत्तर दिया कि आपकी साइकिल में हवा कम होती है तो आप पम्प से हवा क्यों भरते हैं? हवा तो सर्वत्र है। ऐसे ही भगवान सर्वत्र हैं, लेकिन मन्दिर आवश्यक है। मंदिर की कल्पना स्पष्ट है। जनमानस में शिल्पकलाओं और एकत्रीकरण का भाव जगाते हैं। हमारे मन्दिर एकात्मकता के केन्द्र हैं। मन्दिर की स्थापना मात्र ईंट-पत्थर की संरचना नहीं, बल्कि आगम शास्त्र के अनुरूप शास्त्रोक्त है। मन्दिर व्यक्ति को परमेष्ठि से जोड़ने का काम करते हैं।
दत्तात्रेय होसबाले जी ने मंदिर केंद्रित ग्राम विकास को लेकर कहा कि समाजसेवी अन्ना हजारे जी ने मन्दिर केन्द्रित ग्राम विकास कार्य की शुरुआत रालेगण सिद्धि गांव में जनचेतना जगाकर की। एक बार पूछने पर उन्होंने बताया था कि यह प्रेरणा उन्हें मंदिर केंद्रित व्यवस्था से मिली है। इसी तरह एक स्वयंसेवक ने सरकारी नौकरी छोड़कर कर्नाटक के एक गांव में 900 साल प्राचीन सीताराम मंदिर के आसपास गंदगी और कुव्यवस्था को दूर कर मन्दिर की शिल्पकला पर पुस्तिका बनवायी और केवल 5 वर्षों में ही वह मंदिर ग्राम चेतना का केंद्र बन गया।
गाँवों का विकास स्वास्थ्य, शिक्षा केंद्रित हो। देश के प्रधानमंत्री भी ग्राम विकास और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। संघ के स्वयंसेवक भी यह काम लगातार कर रहे हैं। गांव में ही पढ़ाई, दवाई और रोजगार मिले, इसके लिए सामाजिक संस्थाओं को काम करना चाहिए। भारत के पुनर्निर्माण का कार्य केवल दिल्ली में नहीं, बल्कि गाँवों से होना चाहिए। नारायण ही चेतन व अचेतन दोनों अवस्था हैं। नर सेवा से ही नारायण सेवा है। इसके अनुरूप हमारी दृष्टि होनी चाहिए। लक्ष्मी-नारायण प्रकृति और पुरुष के तादात्म्य हैं।
सरकार्यवाह जी ने कहा कि कौटिल्य कहते हैं – “धर्मस्य मूलं अर्थः” धर्म का आधार अर्थ है और “सुखस्य मूलं धर्म:” सुख का आधार धर्म है। जीवन और धन का सम्बन्ध नाव और पानी जैसा है। नाव को चलाने के लिए पानी आवश्यक है। लेकिन यदि वही पानी नाव में घुस जाए तो वह डूब जाती है। वैसे ही जीवन को चलाने के लिए धन ज़रूरी है, लेकिन यदि धन ही जीवन पर हावी हो जाए तो विनाश तय है। सत्य, शुचिता, करुणा, तपस्या, ये धर्म के चार स्तम्भ हैं। हर गांव मोहल्ले में पूजा-अर्चना के स्थान हों। जहां अपने बड़प्पन के अहंकार से मुक्त हुआ जा सके। यह मंदिर आसपास के लिए प्रेरणा बने।