यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
(जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ (अवतरित होता हूँ)| (श्रीमद्भगवद्गीता ४.७ ) साधुजनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए, मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | (श्रीमद्भगवद्गीता ४.८)
संक्षिप्त परिचय
- भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात् ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ पंचांग के अनुसार अगस्त के महीने में पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे ‘जन्माष्टमी’, ‘कृष्णाष्टमी’ या ‘गोकुलाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू लोग श्रीकृष्ण के जन्म को विष्णु के आठवें अवतार के रूप में मनाते हैं। यह हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन (अष्टमी) को मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और भारतीय समुदायों द्वारा विश्वभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
- यह हिंदुओं का, विशेष रूप से वैष्णव परंपरा के अनुयाई हिंदुओं के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है। भागवत पुराण में वर्णित कृष्ण के जीवन कथा के अनुसार यह पर्व मध्य रात्रि मे कृष्ण जन्म के उपलक्ष्य मे उपवास, रात्रि जागरण और नृत्य-नाट्य अभिनयो और मध्य रात्रि भक्ति गायन के माध्यम से मनाया जाता है।
- भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम वासुदेव था। कंस ने देवकी के आठवें पुत्र के बारे में भविष्यवाणी सुनी थी कि वह उसे मार डालेगा, इसलिए उसने देवकी और वासुदेव को जेल में डाल दिया था। श्री कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ और वासुदेव ने उन्हें बचाने के लिए उन्हें गोवर्धन पर्वत के पास गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर छोड़ दिया। कृष्ण की कई बाल लीलाएँ और चमत्कारों की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं, जैसे कि उनकी माखन चोरी और उनके द्वारा राक्षसों का वध इत्यादि।
- जन्माष्टमी उत्सव का केंद्र विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन होता है लेकिन, अब, यह एक वैश्विक त्योहार बन गया है। यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश सहित भारत के अन्य सभी राज्यों मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल ओडिशा, में पाए जाने वाले प्रमुख वैष्णवों और गैर-सांप्रदायिक समुदायों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। कृष्ण जन्माष्टमी त्योहार नंदोत्सव के बाद आता है। यह उस दिन की याद मे मनाया जाता है जब नंद बाबा ने कृष्ण जन्म के उल्लास में लोगों को उपहार बांटे थे।
कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है:-
- उपवास और पूजा: भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और रात्रि को विशेष पूजा अर्चना करते हैं। पूजा का समय विशेष रूप से मध्यरात्रि होता है, जब कृष्ण का जन्म हुआ था।
- मूर्ति सजावट: घरों और मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियों को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। मूर्तियों को दूध, दही, शहद, और घी से स्नान कराया जाता है, जिसे पंचामृत कहा जाता है।
- भजन और कीर्तन: इस दिन विशेष भजन, कीर्तन, और भागवत कथा का आयोजन होता है। भक्त श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके दिव्य गुणों का गुणगान करते हैं।
- दही हांडी: विशेष रूप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में दही हांडी का आयोजन होता है। इसमें मटकी (घड़ा) को दही, शहद, और अन्य पदार्थों से भरकर ऊंची जगह पर लटका दिया जाता है। युवक एक मानव पिरामिड बनाकर उस मटकी को तोड़ते हैं। यह कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाता है।
- रासलीला और झांकियाँ: रात को विशेष रासलीला (नृत्य) और झांकियाँ आयोजित की जाती हैं, जो कृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाती हैं।
- मिठाइयाँ और प्रसाद: इस दिन विशेष मिठाइयाँ जैसे कि पेठा, मोहनभोग, और पंचामृत तैयार की जाती हैं। ये प्रसाद के रूप में भगवान को अर्पित किया जाता है और भक्तों में वितरित किया जाता है।
भारत के विभिन्न प्रदेशों में कृष्ण जन्माष्टमी
भारत में कृष्ण जन्माष्टमी विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न तरीकों से मनाई जाती है। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक विशेषताओं के अनुसार यह उत्सव पूरे हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पूरे भारतवर्ष में प्रमुख मंदिर विशेष रूप से सजाए जाते हैं। इन मंदिरों में भव्य सजावट, विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
उत्तर प्रदेश
भगवान कृष्ण के जन्म स्थल मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ के प्रमुख मंदिर जैसे श्री कृष्ण जन्मभूमि और गोवर्धन विशेष सजावट और पूजा के साथ सजीव होते हैं। भक्त रात्रि को मंदिरों में विशेष पूजा और भजन कीर्तन करते हैं। वृंदावन में भी कृष्ण जन्माष्टमी विशेष धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ ‘रासलीला’ का आयोजन होता है, जिसमें कृष्ण की लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के गोकुल में दही हांडी का आयोजन बड़े उत्साह के साथ किया जाता है। यहां के लोग कृष्ण के बाल रूप की पूजा करते हैं और विशेष मिठाइयाँ बनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्री बांके बिहारी मंदिर की भव्य सजावट की जाती है एवं विशेष धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
दिल्ली
दिल्ली में इस्कॉन मंदिर और अन्य प्रमुख कृष्ण मंदिर जैसे लक्ष्मी नारायण मंदिर को कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष रूप से सजाया जाता है। मंदिर को रंगीन रोशनी, फूलों, और झांकियों से सजाया जाता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में कृष्ण जन्माष्टमी को दही हांडी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसमें एक ऊंचे स्थान पर दही, शहद और अन्य पदार्थों से भरी मटकी लटका दी जाती है। युवक मानव पिरामिड बनाकर इस मटकी को तोड़ते हैं। दही हांडी की प्रतियोगिताएं महाराष्ट्र के अधिकांश स्थानों पर आयोजित की जाती हैं जोकि सभी के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बनी रहती हैं। यह कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त पुणे में स्थित श्री कृष्ण मंदिर और अन्य प्रमुख मंदिरों को कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सजाया जाता है। यहाँ रातभर भजन और कीर्तन होते हैं और विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
गुजरात
गुजरात में द्वारकाधीश मंदिर कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिर और उसका सम्पूर्ण परिसर रोशनी से जगमगा उठता है। इस दिन लोग विशेष रूप से मिठाइयाँ और पकवान बनाते हैं और बच्चों को कृष्ण के रूप में सजाया जाता है। यहाँ रासलीला का आयोजन भी बड़े धूमधाम से होता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन की घटनाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
राजस्थान
राजस्थान के उदयपुर में कृष्ण जन्माष्टमी की रात को विशेष पूजा और रासलीला का आयोजन होता है। यहां के लोग पारंपरिक राजस्थानी पहनावे में सजकर पूजा में शामिल होते हैं। जयपुर में भी कृष्ण जन्माष्टमी विशेष उत्साह के साथ मनाई जाती है। यहाँ भी मंदिरों की सजावट, भजन, कीर्तन और रासलीला का आयोजन होता है।
उड़ीसा
उड़ीसा का पुरी वह स्थान है जहाँ जगन्नाथ मंदिर है। यह मंदिर उड़ीसा का सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थल माना जाता है। पुरी में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस दिन पुरी की सड़कें खूबसूरती से सजाई जाती हैं और भक्त भक्ति संगीत की धुन में भाव-विभोर हो उठते हैं।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव के दौरान भक्त भगवान श्री कृष्ण के गीत गाते हैं। अपने घर के सामने कृष्ण के छोटे-छोटे पैरों के निशान बनाते हैं। इसके अतिरिक्त लोग छोटे बच्चों को कृष्ण की तरह तैयार करते हैं और उनकी धुनों पर नाचतें हैं। लोग आधी रात के दौरान उपवास करते हैं और मंत्र जाप करते हैं।
आंध्रप्रदेश
आंध्रप्रदेश में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को ‘गोपूजा दिनोत्सवम’ के रूप में मनाया जाता है तथा राज्य के सभी मंदिरों में गोपूजा गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
वस्तुतः कृष्ण जन्माष्टमी भारत के विभिन्न हिस्सों में एक जैसे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है, लेकिन प्रत्येक क्षेत्र की अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक विशेषताएँ होती हैं। हर जगह इस त्योहार की अद्वितीयता और विशिष्टता देखने को मिलती है, जो भारतीय विविधता और समृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा अवसर है जो लोगों को एकता, प्रेम, और भक्ति की भावना को अनुभव करने और मनाने का मौका देता है। यह त्योहार जीवन में खुशी, उल्लास और समर्पण का प्रतीक है।
महत्त्व
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस सदी में यह त्योहार नए संदर्भ और परिस्थितियों में भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम समझा जा सकता है:-
- भगवान श्री कृष्ण का अवतार: श्री कृष्ण हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था और वे धर्म की पुनर्स्थापना के लिए पृथ्वी पर आए थे। उनका जीवन और शिक्षाएँ भक्तों के लिए एक आदर्श और मार्गदर्शक हैं।
- धर्म और न्याय की स्थापना: श्री कृष्ण ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जैसे कि कंस का वध, दुष्टों का नाश, और धर्म की स्थापना। उन्होंने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं और धर्म का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
- संस्कृति और परंपरा का संरक्षण: इस सदी में वैश्वीकरण और आधुनिकता के बावजूद, कृष्ण जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति और परंपराओं को संजोने और संरक्षित रखने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह त्योहार लोक कलाओं, संगीत, नृत्य, और सांस्कृतिक अनुष्ठानों को जीवित रखता है।
- भक्ति की विविधता: कृष्ण जन्माष्टमी विभिन्न सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भों में विविधता से मनाई जाती है, जो भारतीय सांस्कृतिक विविधता और उसकी सुंदरता को प्रदर्शित करता है।
- समुदाय की एकता: कृष्ण जन्माष्टमी सामाजिक एकता और सामुदायिक संबंधों को प्रोत्साहित करती है। विभिन्न जाति, धर्म, और पृष्ठभूमि के लोग मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं, जो सामाजिक समरसता और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
- स्वैच्छिक सेवा और दान: इस दिन कई समाजसेवी संगठन और मंदिर दान, भोजन वितरण, और अन्य सामाजिक कार्यों का आयोजन करते हैं, जिससे समाज के कमजोर वर्गों की सहायता होती है। यह त्योहार सेवा और परोपकार की भावना को प्रोत्साहित करता है।
- शिक्षा और ज्ञान: कृष्ण जन्माष्टमी पर आयोजित किए जाने वाले भागवत कथा, भजन, और अन्य धार्मिक कार्यक्रम शिक्षा और ज्ञान के प्रसार में सहायक होते हैं। यह अवसर बच्चों और युवाओं को श्री कृष्ण के जीवन, शिक्षाओं, और उनकी महत्ता के बारे में सिखाने का है।
वैश्विक प्रभाव
- वैश्विक भक्ति का प्रसार: 21वीं सदी में, कृष्ण जन्माष्टमी न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में मनाई जाती है। कई देशों में भारतीय समुदाय इस त्योहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं, जो कृष्ण की शिक्षाओं और भक्ति का वैश्विक प्रसार दर्शाता है।
- विविध सांस्कृतिक संवाद: विश्वभर में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव विविध सांस्कृतिक संवाद और अंतर्राष्ट्रीय समझ को बढ़ावा देता है। विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों के लोग इस त्योहार के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ते हैं और भारतीय संस्कृति का हिस्सा बनते हैं।
21वीं सदी में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक, और वैश्विक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार आध्यात्मिकता, सामाजिक एकता, सांस्कृतिक संरक्षण, और वैश्विक भक्ति को प्रोत्साहित करता है। आधुनिक युग में भी यह त्योहार लोगों को जीवन के गहरे अर्थ और उद्देश्य की ओर प्रेरित करता है।