गुरु पूर्णिमा : आषाढ़, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा

भारत में गुरुपूर्णिमा का पर्व केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है – जो प्राचीन काल से हमारे जीवन और चिंतन का अभिन्न अंग रही है। यह पर्व न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का मूल स्रोत भी है। हमारे धर्मग्रंथों, महाकाव्यों, दर्शनों और लोक परंपराओं में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है – कहीं गुरु रूप में कोई संत, कहीं ऋषि-महर्षि, और कहीं स्वयं भगवान तक को प्रतिष्ठित किया गया है। और कहीं गुरु के रूप में केसरिया ध्वज — एक चेतन प्रतीक, जो त्याग, तप और तेज का प्रतिनिधि है।

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महर्षि वाल्मीकि जयंती – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा

आज शायद ही ऐसा कोई भारतीय मिले, जो महर्षि वाल्मीकि के महाकाव्य ‘रामायण’ से परिचित न हो। ‘रामायण’ मानवीय आदर्शो का मार्गदर्शक महाकाव्य है, इसीलिए उसे मानवीयता का पथ-प्रदर्शक आदर्श काव्य माना जाता है। सारे संसार में समादरणीय बने इस महाकाव्य के लिए हर भारतीय अभिमान का अनुभव करे तो कोई आश्चर्य नहीं। संसार भर में सबसे प्राचीन महाकाव्य ‘रामायण’ को आदिकाव्य होने का गौरव प्राप्त होना स्वाभाविक है। इसी कारण भगवान्‌ श्री रामचंद्र के साधना चरित्र से जनता-जनार्दन परिचित हो सकी।

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