राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख माननीय श्री स्वांत रंजन जी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सी.एच.एस. गुरुकुलम, मोहनपुर, मेहरबानसिंह पुरवा, कानपुर में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। उन्होंने बताया कि 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया था। तब घोषणा के बाद, सभी संघचालकों की एक तीन दिवसीय बैठक हुई थी, जिसमें आरएसएस ने बिना शर्त आंदोलन का समर्थन करने का फैसला किया गया था। विभिन्न मुद्दों पर आरएसएस की अपनी नीति थी।
इसी प्रकार जब भारत छोड़ो आंदोलन की चिमूर से खबरें बर्लिन रेडियो पर भी प्रसारित की गईं। यहां आंदोलन का नेतृत्व कांग्रेस के उद्धवराव कोरेकर और संघ के अधिकारियों दादा नाइक, बाबूराव बेगड़े, अन्नाजी सिरास ने किया। बालाजी राजापुरकर एक आरएसएस स्वयंसेवक, ब्रिटिश गोलीबारी में मरने वाले एकमात्र आंदोलनकारी थे।
कई आरएसएस स्वयंसेवकों ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। उनमें से कुछ थे: राजस्थान में प्रचारक जयदेवजी पाठक, जो बाद में विद्या भारती में सक्रिय हुए, आर्वी (विदर्भ) में डॉ. अन्नासाहेब देशपांडे, जशपुर (छत्तीसगढ़) में रमाकांत केशव (बालासाहेब) देशपांडे, जिन्होंने बाद में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की और श्री वसंतराव ओक जो बाद में दिल्ली के प्रांत प्रचारक बने। ऐसे ही पटना के प्रसिद्ध वकील कृष्ण वल्लभप्रसाद नारायण सिंह (बाबूजी) जो बाद में बिहार के संघचालक बने। दिल्ली में श्रीचंद्रकांत भारद्वाज, जिनके पैर में गोली लगी थी।
इसके अलावा कई आरएसएस स्वयंसेवक भूमिगत काम में शामिल थे। उदाहरण के लिए अरुणा आसफ अली को दिल्ली में हंसराज गुप्ता ने शरण दी थी। महाराष्ट्र के सतारा के नाना पाटिल को पंडित सातावलेकर ने शरण दी थी, जो औंध के संघचालक थे।
इस अवसर पर क्षेत्र प्रचारक श्री अनिल जी, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख श्री राजेंद्र प्रसाद जी, प्रांत प्रचारक श्रीराम जी, सह प्रान्त प्रचारक श्री मुनीश जी, क्षेत्र कार्यकारिणी सदस्य श्री सुरेश जी, प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉ. अनुपम जी, विभाग प्रचारक श्री बैरिस्टर जी, विद्यालय के अध्यक्ष श्री मोहित सिंह यादव जी आदि विभाग तथा जिला स्तर के प्रचारक उपस्थित रहे।