कोलकाता में त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे, बाद में वे दिल्ली आए। जब 1989 में हम लोगों ने डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी मनाई तो उस समय उनको शताब्दी समिति में लेने के लिए हमारे कार्यकर्ता उनके पास गए थे, उन्होंने सहमति दे दी। तब उन्होंने कहा – 1911 में एक बार डॉ. हेडगेवार मेरे घर आए थे। उस समय डॉ. हेडगेवार ने यह बात कही थी कि दादा लगता है, इस समाज को कुछ ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है और यह ट्रेनिंग देने की फुर्सत किसी को नहीं है, सबने अपना-अपना काम चुन लिया है। मुझे लगता है कि यह काम मुझे ही करना पड़ेगा।
तबसे उनके मन में यह विचार था कि स्वतंत्रा देश कहलाने के लिए हमारा समाज योग्य नहीं है, उसको योग्य बनाने का काम करना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने प्रयोग किए। लगभग 7-8 वर्ष तक यह कैसे हो सकता है, इसके प्रयोग किए। प्रशिक्षण में क्या कार्यक्रम हो सकते हैं, इसके प्रयोग किए। अनेक संस्थाएँ चल रही थीं उनके काम देखे, उसमें से कुछ लेकर प्रयोग करने का प्रयास किया, कुछ अपने मन से सोचा। प्रशिक्षण देने वाले कुछ मंडल चलाए, उन्होंने वर्धा में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक मण्डल भी चलाया था। संघ के नाम के दो शब्द संघ की स्थापना के 3-4 वर्ष पहले ही उन्होंने उपयोग किए थे। ये सारे प्रयोग करके अपने समाज को खड़ा करने की एक पद्धति उन्होंने विकसित की और 27 सितम्बर 1925, शुक्रवार, विजयादशमी को नागपुर में उन्होंने घोषणा की कि यह काम आज से शुरु हो रहा है।
उस समय जितने सहयोगी मिल सके, उतने सहयोगियों के साथ उन्होंने शुरु किया। और इतना ही बताया कि यह काम अभी शुरु हो रहा है और कुछ नहीं बताया। बाकी सब प्रयोग करके विकसित (Evolve) हुआ है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है? यह कार्यप्रणाली (Methodology) है, और कुछ नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम का जो संगठन है वह करता क्या है? वह व्यक्ति निर्माण का काम करता है। क्योंकि समाज के आचरण में कई प्रकार का परिवर्तन आज भी हम चाहते हैं। हमको भेद मुक्त समाज चाहिए, समता युक्त समाज चाहिए, शोषण मुक्त समाज चाहिए। समाज से स्वार्थ भी जाना चाहिए। लेकिन, ये जाना चाहिए केवल ऐसा कहने से नहीं होगा। समाज का आचरण उदाहरणों की उपस्थिति में
बदलता है। हमारे यहाँ आदर्श हैं, महापुरुषों की कोई कमी नहीं है। देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले इस भूमि में आदिकाल से इस क्षण तक बहुत लोग हैं। लेकिन अपने सामान्य समाज की प्रवृत्ति क्या है? वह उनकी जयंती, पुण्यतिथि मनाता है। उनकी पूजा जरूर करेगा, उनके जैसा गलती से भी नहीं बनेगा। छत्रापति शिवाजी महाराज फिर से होने चाहिए, लेकिन मेरे घर में नहीं होने चाहिए, दूसरे के घर में होना चाहिए। कुछ वर्ष पहले रीडर्स डाइजेस्ट में एक अंग्रेजी वाक्य पढ़ा था, उसमें कहा था कि The ideals are like stars, which we never reach. आदर्श दूर ही रहते हैं। उनकी पूजा होती है, उनका अनुकरण नहीं होता है। आगे का वाक्य है, But we can plot our chart according to them. उसमें ploting the chart का काम नहीं होता। वह किसके भरोसे होता है? अपने निकट जो लोग हैं, उनके आचरण का प्रभाव हमारे आचरण पर होता है। अगर देश के प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक गली, मोहल्ले में स्वतंत्र भारत के आज के नागरिक का जैसा आचरण होना चाहिए, वैसा आचरण करने वाले हर परिस्थिति में उसको न छोड़ने वाले, उस पर अड़े रहने वाले, चारित्र्य सम्पन्न, सम्पूर्ण समाज से अपना आत्मीय संपर्क रखने वाले लोग खड़े हो जाएंगे, तो उस वातावरण में समाज का आचरण बदलेगा।
संघ की योजना प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक गली में अच्छे स्वयंसेवक खड़े करना है। अच्छे स्वयंसेवक का मतलब है, जिसका अपना चरित्र शुद्ध है। जो सम्पूर्ण समाज को, देश को अपना मानकर काम करता है। किसी को भेदभाव से, शत्रुता के भाव से नहीं देखता और इसके कारण जिसने समाज का स्नेह और विश्वास अर्जित किया है। ऐसा आचरण करने वाले लोगों की टोली प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक मोहल्ले में खड़ी हो। यह योजना 1925 में संघ के रूप में प्रारंभ हुई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा के माध्यम से हमारा शारीरिक मानसिक बौद्धिक विकास होता है एवं हम सभी के अंदर राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा प्रबल होती है