बौद्धिकों का एक प्रभावशाली समूह, जो मानता है कि भारत का अस्तित्व 15 अगस्त को हुआ था, हमेशा स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका पर सवाल उठाता है। वे इतिहास को छिपाने और यह तस्वीर पेश करने में अधिक रुचि रखते हैं कि आरएसएस कभी भी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नहीं था। बौद्धिक यह तर्क देने के आदी हो चुके हैं कि स्वतंत्रता महात्मा गांधी और कांग्रेस द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम थी।
श्रेणी: विविध
‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ : भारत में प्रासंगिकता या विभाजन का षड्यंत्र?
हर साल 9 अगस्त को ‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ दुनियाभर में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य उन मूलनिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है, जिन पर उपनिवेशवाद या साम्राज्यवाद के दौरान अमानवीय अत्याचार हुए। परंतु प्रश्न यह है कि क्या यह दिवस भारत के लिए प्रासंगिक है? या इसे भारत के सामाजिक ताने-बाने में फूट डालने के षड्यंत्र के रूप में कुछ शक्तियाँ भुना रही हैं?
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पूर्व प्रयत्न और संघ स्थापना
कोलकाता में त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे, बाद में वे दिल्ली आए। जब 1989 में हम लोगों ने डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी मनाई तो उस समय उनको शताब्दी समिति में लेने के लिए हमारे कार्यकर्ता उनके पास गए थे, उन्होंने सहमति दे दी। तब उन्होंने कहा – 1911 में एक बार डॉ. हेडगेवार मेरे घर आए थे। उस समय डॉ. हेडगेवार ने यह बात कही थी कि दादा लगता है, इस समाज को कुछ ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है और यह ट्रेनिंग देने की फुर्सत किसी को नहीं है, सबने अपना-अपना काम चुन लिया है। मुझे लगता है कि यह काम मुझे ही करना पड़ेगा।
भा.म.सं.@70 – श्रमिक आंदोलन को भारत की आत्मा से जोड़ने वाली यात्रा
विरजेश उपाध्याय
23 जुलाई, 2025 को भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस, भा.म.सं.) अपनी स्थापना के 70 वर्ष पूरे कर रहा है। आज यह केवल भारत का ही सबसे बड़ा श्रमिक संगठन नहीं है, बल्कि एक ऐसा आंदोलन है, जिसने देश के श्रमिक आंदोलन की आत्मा को दिशा, उद्देश्य और भारतीय मूल्य दिए।
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आपातकाल – (25 जून, 1975 – 21 मार्च, 1977)
आपातकाल के कुछ तथ्य
- कांग्रेस ने 20 जून, 1975 के दिन एक विशाल रैली का आयोजन किया तथा इस रैली में देवकांत बरुआ ने कहा था, “इंदिरा तेरी सुबह की जय, तेरी शाम की जय, तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय” और इसी जनसभा में अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि वे प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र नहीं देंगी।
योग दिवस – 21 जून
योग का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत के कालखंड से लेकर भगवान शिवजी, भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों में मिलता है। ऋग्वेद में ऋषियों द्वारा ध्यान, तप और आत्मा की खोज का उल्लेख मिलता है, जो योग की प्रारंभिक चेतना को दर्शाता है। उपनिषदों में यह चेतना और विकसित होकर ‘प्रणव साधना’, ‘ध्यान योग’ और ‘ब्रह्मविद्या’ के रूप में दर्शन की परिपक्व अवस्था में पहुँचती है।
देवी अहिल्याबाई होलकर : जन्म 31 मई, 1725
संक्षिप्त परिचय
देवी अहिल्याबाई होलकर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ स्थित चौंढी गांव में 31 मई 1725 को हुआ था। उनके पिता का नाम मानकोजी शिंदे था, जो मराठा साम्राज्य में पाटिल के पद पर कार्यरत थे। देवी अहिल्याबाई का विवाह मालवा में होलकर राज्य के संस्थापक मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। साल 1745 में अहिल्याबाई के बेटे मालेराव का जन्म हुआ। इसके करीब 3 साल बाद बेटी मुक्ताबाई ने जन्म लिया।
गीता जयंती
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि’
संक्षिप्त परिचय
- ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ समस्त विश्व के लिए आध्यात्मिक दीप स्तम्भ है। अध्यात्म भारत की आत्मा है जो पूरे विश्व के लिए अनमोल उपहार है। ‘गीता’ भारतीय अध्यात्म की सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ‘गीता’ का प्रभाव देशकाल की सीमाओं में आबद्ध नहीं हैं बल्कि वैश्विक पटल पर गीता का प्रभाव परिलक्षित होता है।वर्तमान में हताश निराश एवं कर्मपथ से विमुख हो रही युवा पीढ़ी के लिए ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ अँधेरे में एक रौशनी के समान है। ‘गीता’ में बताये रास्ते का अनुसरण कर आज की युवा पीढ़ी नैतिक मूल्यों का विकास कर समाज एवं देश के विकास में अपना योगदान दे सकती है। ‘गीता’ का सन्देश देश और काल से परे है। प्राचीन कालीन कृषि आधारित समाज से लेकर परवर्ती काल में वाणिज्य और उद्योग आधारित समाज तक और उसके बाद भी ज्ञान एवं तर्क आधारित समाज तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की प्रासंगिकता हर युग में रही है और आगे भी बनी रहेगी।
विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसम्बर 2024)
संक्षिप्त परिचय
मानव अधिकारों से तात्पर्य मानव के उन न्यूनतम अधिकारों से है जो प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक रूप से प्राप्त होने चाहिए, मानव अधिकारों का सम्बन्ध मानव की स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा के साथ जीने के लिए स्थितियाँ उत्पन्न करने से होता है। मानव अधिकार ही समाज में ऐसा वातावरण उत्पन्न करते हैं जिसमें सभी व्यक्ति समानता के साथ निर्भीक रूप से मानव गरिमा के साथ जीवन यापन करते हैं।
1984 में सिख विरोधी दंगे
सारांश:
31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या उनके अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने की थी जो सिख समुदाय से थे। यह हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार की प्रतिक्रिया में की गई थी, जिसे प्रधानमंत्री द्वारा आदेश दिया गया था और जिसमें सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थल श्री हरमंदिर साहिब पर सिख आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सरकारी बलों द्वारा हमला किया गया था। ऑपरेशन ने सिख भावनाओं को भयानक चोट पहुंचाई, जिसने प्रधान मंत्री की हत्या के लिए उकसावे के रूप में कार्य किया।