21 मार्च से बैंगलुरु में होगी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने बताया कि संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस वर्ष बैंगलुरु में 21, 22 एवं 23 मार्च 2025 को आयोजित हो रही है। संघ की कार्य पद्धति में यह निर्णय करने वाली सर्वोच्च इकाई है तथा इसका आयोजन प्रतिवर्ष होता है। यह बैठक बैंगलुरु के चन्नेनहल्ली में स्थित जनसेवा विद्या केंद्र परिसर में होगी।

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श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी – संक्षिप्त जीवन परिचय

सदाशिव-लक्ष्मीबाई दम्पत्ति का आठवां अपत्य युगाब्द 5007 माघ कृष्ण एकादशी (उत्तर में पौष) मूल नक्षत्र में तदनुसार सन 19 फरवरी 1906 को, सोमवार ब्रह्म मुहूर्त पर नागपुर में मामाजी आबा रायकर के घर में जन्म  हुआ। तिथि, नक्षत्र आदि देखकर उस पुत्र का नाम माधव रखा गया।

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स्वामी दयानंद सरस्वती

स्वामी दयानंद का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। परिवार सम्पन्न एवं प्रभावशाली था और पिता के मार्गदर्शन में मूलशंकर ने नीतिशास्त्र, साहित्य एवं व्याकरण का अध्ययन किया। उन्होंने 14 वर्ष की आयु में ही सम्पूर्ण यजुर्वेद संहिता को कंठस्थ कर लिया था।

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जितना भव्य भवन उतना भव्य कार्य खड़ा करना है : डॉ. मोहन भागवत

नई दिल्ली. ‘देश में संघ कार्य गति पकड़ रहा है, व्यापक हो रहा है। आज जिस पुनर्निर्मित भवन का यह प्रवेशोत्सव है उसकी भव्यता के अनुरूप ही हमें संघ कार्य का रूवरूप भव्य बनाना है और हमारे कार्य से उसकी अनुभुति होनी चाहिए। यह कार्य पूरे विश्व तक जाएगा और भारत को विश्वगुरु के पद पर आसीन करेगा, ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाकुंभ जा रहे श्रद्धालुओं की सेवा में तत्पर

फतेहपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, खागा (फतेहपुर) के द्वारा क्षेत्र के प्रमुख हाईवे पर स्थित नवीन मण्डी स्थल के निकट महाकुंभ के लिए जा रहे व वहां से आने वाले श्रद्धालुओं को विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। 27 जनवरी से खागा और उसके आस-पास के स्वयंसेवकों के द्वारा यहां से गुजर रहे श्रद्धालुओं को भोजन व आवश्यकतानुसार चिकित्सकीय परामर्श व दवाईयां उपलब्ध कराई जा रही हैं।

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सुब्रमण्य भारती जयंती – 11 दिसंबर 1882

संक्षिप्त परिचय

यद्यपि लेखक, कवि, पत्रकार, भारतीय स्वतंत्रता के कार्यकर्ता, समाज सुधारक और बहुभाषाविद सुब्रमण्यम भारती का जीवन काल मात्र 39 वर्ष का ही रहा किन्तु इस अल्पकाल में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी, कवि, सामाजिक और आध्यात्मिक सुधारक के रूप में जो योगदान दिया, वह अनुकरणीय और वंदनीय है। भारत के लिए उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियों द्वारा सदैव स्मरण किया जाएगा ।

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गीता जयंती

‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि’ 

संक्षिप्त परिचय

  • ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ समस्त विश्व के लिए आध्यात्मिक दीप स्तम्भ है। अध्यात्म भारत की आत्मा है जो पूरे विश्व के लिए अनमोल उपहार है। ‘गीता’ भारतीय अध्यात्म की सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ‘गीता’ का प्रभाव देशकाल की सीमाओं में आबद्ध नहीं हैं बल्कि वैश्विक पटल पर गीता का प्रभाव परिलक्षित होता है।वर्तमान में हताश निराश एवं कर्मपथ से विमुख हो रही युवा पीढ़ी के लिए ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ अँधेरे में एक रौशनी के समान है। ‘गीता’ में बताये रास्ते का अनुसरण कर आज की युवा पीढ़ी नैतिक मूल्यों का विकास कर समाज एवं देश के विकास में अपना योगदान दे सकती है। ‘गीता’ का सन्देश देश और काल से परे है। प्राचीन कालीन कृषि आधारित समाज से लेकर परवर्ती काल में वाणिज्य और उद्योग आधारित समाज तक और उसके बाद भी ज्ञान एवं तर्क आधारित समाज तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की प्रासंगिकता हर युग में रही है और आगे भी बनी रहेगी।

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विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसम्बर 2024)

संक्षिप्त परिचय

मानव अधिकारों से तात्पर्य मानव के उन न्यूनतम अधिकारों से है जो प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक रूप से प्राप्त होने चाहिए, मानव अधिकारों का सम्बन्ध मानव की स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा के साथ जीने के लिए स्थितियाँ उत्पन्न करने से होता है। मानव अधिकार ही समाज में ऐसा वातावरण उत्पन्न करते हैं जिसमें सभी व्यक्ति समानता के साथ निर्भीक रूप से मानव गरिमा के साथ जीवन यापन करते हैं।

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बालासाहेब देवरस जयंती (मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, पंचमी, विक्रम संवत 1972)

कार्यकारी सारांश

मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हे बालासाहेब देवरस नाम से जाना जाता है, का जन्म दत्तात्रेय कृष्णराव देवरस और पार्वती बाई दंपति के यहाँ मार्गशीर्ष , शुक्ल पक्ष, पंचमी, १९७२, विक्रम संवत यानि 11 दिसंबर, १९१५  को हुआ था । बालासाहेब देवरस को स्वतंत्रता के बाद के भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण काल में राष्ट्रवादी चिंतन के एक दृढ़ स्तम्भ , जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की मातृ ) के उदय के शिल्पी और भारत भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काम को अभूतपूर्व विस्तार देने तथा भारतीय राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के साथ-साथ, हिंदू समेकन, सामाजिक समानता और सद्भाव को नया आयाम देने के लिए स्मरण किया जाता है  ।

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गुरु तेगबहादुर जी (1621-1675 ई.) वैशाख कृष्ण पंचमी 1678-मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी 1732 विक्रम संवत’

संक्षिप्त परिचय

  • विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय आदर्शों, मूल्यों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेगबहादुर जी का अद्वितीय स्थान है। एक आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध समाज के सबसे शांत और अहिंसक व्यक्ति तक का क्या दायित्व बनता है- श्री गुरु तेगबहादुर जी का जीवन और उसकी रक्षा के लिए उनके द्वारा किया गया अपना सर्वोच्च बलिदान, इसका एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक उदाहरण है। सनातन हिन्दू स्वधर्म का पालन करते हुए इसकी रक्षा हेतु डाली गई आहुति लोगों में निर्भीक आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता के कितने उच्चतम प्रतिमान पुनर्स्थापित कर सकती है, इसे समझने के लिए गुरु तेगबहादुर से बेहतर कोई और व्यक्तित्व मिलना दुष्कर हैं।

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