बालासाहेब देवरस जयंती (मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, पंचमी, विक्रम संवत 1972)

कार्यकारी सारांश

मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हे बालासाहेब देवरस नाम से जाना जाता है, का जन्म दत्तात्रेय कृष्णराव देवरस और पार्वती बाई दंपति के यहाँ मार्गशीर्ष , शुक्ल पक्ष, पंचमी, १९७२, विक्रम संवत यानि 11 दिसंबर, १९१५  को हुआ था । बालासाहेब देवरस को स्वतंत्रता के बाद के भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण काल में राष्ट्रवादी चिंतन के एक दृढ़ स्तम्भ , जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की मातृ ) के उदय के शिल्पी और भारत भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काम को अभूतपूर्व विस्तार देने तथा भारतीय राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के साथ-साथ, हिंदू समेकन, सामाजिक समानता और सद्भाव को नया आयाम देने के लिए स्मरण किया जाता है  ।

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गुरु तेगबहादुर जी (1621-1675 ई.) वैशाख कृष्ण पंचमी 1678-मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी 1732 विक्रम संवत’

संक्षिप्त परिचय

  • विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय आदर्शों, मूल्यों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेगबहादुर जी का अद्वितीय स्थान है। एक आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध समाज के सबसे शांत और अहिंसक व्यक्ति तक का क्या दायित्व बनता है- श्री गुरु तेगबहादुर जी का जीवन और उसकी रक्षा के लिए उनके द्वारा किया गया अपना सर्वोच्च बलिदान, इसका एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक उदाहरण है। सनातन हिन्दू स्वधर्म का पालन करते हुए इसकी रक्षा हेतु डाली गई आहुति लोगों में निर्भीक आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता के कितने उच्चतम प्रतिमान पुनर्स्थापित कर सकती है, इसे समझने के लिए गुरु तेगबहादुर से बेहतर कोई और व्यक्तित्व मिलना दुष्कर हैं।

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इस्कॉन के संन्यासी चिन्मय कृष्ण दास को अन्यायपूर्ण कारावास से मुक्त करें : दत्तात्रेय होसबाले

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार तत्काल बंद हों।

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अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली, 26 नवंबर 2024. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है. विज्ञान में भी और अध्यात्म में भी श्रद्धायुक्त व्यक्ति को ही न्याय मिलता है. अपने साधन एवं ज्ञान का अहंकार जिसके पास होता है, उसे नहीं मिलता है. श्रद्धा में अंधत्व का कोई स्थान नहीं है. जानो और मानो यही श्रद्धा है, परिश्रमपूर्वक मन में धारण की हुई श्रद्धा.

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महावीर लाचित बरफुकन, जन्म तिथि : षष्ठी, कृष्ण पक्ष, मार्गशीर्ष, 1679 – विक्रम संवत् (24 नवंबर, 1622)

पूर्वोत्तर के वीर शिवाजी महावीर लाचित बरफुकन

अपनी असाधारण वीरता के कारण पूर्वोत्तर भारत के ‘वीर शिवाजी’ कहे जाने वाले लाचित बरफुकन 17वीं शताब्दी के एक महान सेनापति और वीर योद्धा थे। असम के अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बरफुकन ने 1667 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना को सराईघाट के युद्ध में पराजित कर पूर्वोत्तर में अहोम साम्राज्य को शत्रुओं से संरक्षित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया था।

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कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय (विशेष) का नागपुर में हुआ शुभारंभ

नागपुर, 18 नवम्बर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय (विशेष) का रेशीमबाग स्थित डॉ. हेडगेवार स्मृति भवन परिसर के महर्षि व्यास सभागार में उद्घाटन हुआ. इस अवसर पर सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, अ. भा. सह सेवा प्रमुख एवं वर्ग पालक अधिकारी राजकुमार जी मटाले तथा जोधपुर प्रांत संघचालक एवं सर्वाधिकारी हरदयाल वर्मा जी उपस्थित थे. उन्होंने भारत माता की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की. सह सरकार्यवाह द्वय मुकुंदजी और रामदत्त जी भी उपस्थित थे.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर विशाल साहसिक यात्रा का हुआ आयोजन, रायपुर से गजनेर तक निकाली गई यात्रा

पुखरायां. पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समय-समय पर समाज में विभिन्न प्रकार के आयोजन करता रहता है। इसी क्रम में सरवन खेड़ा खंड में साहसिक यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के लोगों ने प्रतिभाग़ किया। साहसिक यात्रा का उद्देश्य जनमानस के माध्यम से विभिन्न प्रकार की पर्यावरण गतिविधियों को प्रारंभ कराया जाना है, साथ ही समाज में पूर्व से संचालित हो रही गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाना है।

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हमारा देश अतीत में समृद्ध रहा है और समाज की ताकत से भविष्य में भी समृद्ध होगा : डॉ. मोहन भागवत

पिथौरागढ़, उत्तराखंड. जिले के सीमांत क्षेत्र (मुआनी) में पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार विद्यालय के नव निर्मित भवन को आज क्षेत्र की जनता को समर्पित किया. लोकार्पण कार्यक्रम के अवसर पर सरसंघचालक जी ने चंदन का पौधा रोपा. सीमांत जनजाति समुदाय ने सरसंघचालक जी का परम्परागत रीति से स्वागत किया.

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विकास की भारतीय अवधारणा समग्र और प्रकृति के तालमेल बनाकर चलने वाली है – डॉ. मोहन भागवत जी

भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन विविभि 2024 का शुभारम्भ

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धर्मयोद्धा : भगवान बिरसा मुंडा

भारत में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों और योद्धाओं की एक दीर्घ परंपरा रही है और स्वतंत्रता संग्राम में उसका अविस्मरणीय योगदान है। इतिहास और राष्ट्रीय संदर्भ में बिरसा मुंडा ऐसा व्यक्तित्व है, जिसने तत्कालीन जनजातीय समाज की परिसीमितता की परिधि को तोड़कर राष्ट्र और धर्म के परिप्रेक्ष्य में ऐसा अमूल्य योगदान दिया जो किसी भी प्रकार से स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे अन्य नायकों, विचारकों और चिंतकों के योगदान से कम नहीं है।

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