100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज : तृतीय दिवस

100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज : तृतीय दिवस

अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं – डॉ. मोहन भागवत जी

संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है – सरसंघचालक जी

तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ का दूसरा दिन

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संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली, 26 अगस्त. संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के प्रथम दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। संघ कार्य की प्रेरणा संघ प्रार्थना के अंत में कहे जाने वाले “भारत माता की जय” से मिलती है। संघ के उत्थान की प्रक्रिया धीमी और लंबी रही है, जो आज भी निरंतर जारी है।

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