योग का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत के कालखंड से लेकर भगवान शिवजी, भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों में मिलता है। ऋग्वेद में ऋषियों द्वारा ध्यान, तप और आत्मा की खोज का उल्लेख मिलता है, जो योग की प्रारंभिक चेतना को दर्शाता है। उपनिषदों में यह चेतना और विकसित होकर ‘प्रणव साधना’, ‘ध्यान योग’ और ‘ब्रह्मविद्या’ के रूप में दर्शन की परिपक्व अवस्था में पहुँचती है।
संघ की स्थापना समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करने के लिए हुई : जे. नंद कुमार
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र का कार्यकर्ता विकास वर्ग प्रथम (सामान्य) का समापन कार्यक्रम दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय, कानपुर में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मंच पर मुख्य अतिथि पद्मश्री उमा शंकर पाण्डेय जी, मुख्य वक्ता प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक श्री जे. नंद कुमार जी के साथ ही कानपुर विभाग के विभाग संघचालक डॉ. श्याम बाबू जी व वर्ग के सर्वाधिकारी श्री भुवनेश्वर वर्मा जी उपस्थित रहे।
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डॉक्टर जी ने जब संघ शुरू किया, तब साधन नहीं थे, साधन रत हृदय था : मिथिलेश नारायण
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, कानपुर प्रांत का संघ शिक्षा वर्ग (सामान्य) का समापन कार्यक्रम आज सीएचएस गुरुकुलम, मेहरबान सिंह का पुरवा में आयोजित हुआ। इस अवसर पर मंच पर मुख्य अतिथि बाबा नामदेव जी गुरूद्वारा, किदवई नगर, कानपुर के प्रधान सेवक श्री सरदार नीतू सिंह जी, मुख्य वक्ता आरएसएस के क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख, पूर्वी उत्तर प्रदेश श्री मिथिलेश नारायण जी, कानपुर दक्षिण के भाग संघचालक श्री राधेश्याम जी व संघ शिक्षा वर्ग (सामान्य) के सर्वाधिकारी श्री रामलखन जी उपस्थित रहे।
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हिन्दू साम्राज्य दिवस
छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के ऐसे अद्वितीय नायक हैं जिन्हें न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की अनेक पीढ़ियाँ भी स्मरण करेंगी। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने उस युग में, जब इस्लामी आक्रांताओं के अत्याचारों से भारतीय समाज शिथिल हो चुका था, एक नई चेतना और जागृति का संगठित प्रयास करते हुए उसे पुनर्जीवित किया।
“हमें अपनी सुरक्षा के मामले में ‘स्व’ निर्भर होना चाहिए” – डॉ. मोहन भागवत जी
नागपुर, 05 जून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय के समापन समारोह में कहा कि “हमें अपनी सुरक्षा के मामले में ‘स्व’ निर्भर होना चाहिए।” और इसके लिए सेना, शासन-प्रशासन के साथ समाज बल आवश्यक है। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद की गई कार्रवाई से देश की रक्षा और रक्षात्मक अनुसंधान क्षमताएं सिद्ध हुईं। इस अवसर पर शासन और प्रशासन की दृढ़ता भी दिखी।
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तियानमेन चौक नरसंहार : वामपंथी खूनी इतिहास एवं संविधान विरोधी कृत्यों के सन्दर्भ में
तियानमेन चौक नरसंहार (3–4 जून 1989) वामपंथी अधिनायकवादी विचारधारा की अमानवीय प्रवृत्तियों और उसके छिपे हुए कुटिल उद्देश्यों का एक ज्वलंत प्रतीक है। इस दौरान न केवल हजारों निर्दोष नागरिकों, विशेषकर छात्रों और श्रमिकों, का निर्मम दमन किया गया, बल्कि करोड़ों चीनी नागरिकों के मौलिक संवैधानिक अधिकारों को भी रौंद दिया गया। यह घटना दिखाती है कि जब सत्ता जनभावनाओं से कटकर केवल दमन के बल पर शासन करती है, तो वह रक्तपात और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को कुचलने में भी नहीं चूकती।
सार्थक संवाद ही पत्रकारिता का मूल मंत्र : सुभाष जी
झांसी। पत्रकारिता के क्षेत्र में विश्वसनीयता कम हो रही है और विश्वास के बिना समाज,देश , दुनिया का चलना संभव नहीं है। श्रृद्धा जगाने का काम प्रोफेशन वाला नहीं कर सकता। पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था, जो कि अब प्रोफेशन बन गया है। यह विचार देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक सुभाष जी ने व्यक्त किए। वहीं मुख्य अतिथि पद्मश्री उमाशंकर पांडेय ने कहा कि जल है तो कल है। अब जल और पर्यावरण पर भी पत्रकारिता आवश्यक है।
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देवी अहिल्याबाई होलकर : जन्म 31 मई, 1725
संक्षिप्त परिचय
देवी अहिल्याबाई होलकर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ स्थित चौंढी गांव में 31 मई 1725 को हुआ था। उनके पिता का नाम मानकोजी शिंदे था, जो मराठा साम्राज्य में पाटिल के पद पर कार्यरत थे। देवी अहिल्याबाई का विवाह मालवा में होलकर राज्य के संस्थापक मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। साल 1745 में अहिल्याबाई के बेटे मालेराव का जन्म हुआ। इसके करीब 3 साल बाद बेटी मुक्ताबाई ने जन्म लिया।
वीर सावरकर और महात्मा गाँधी
वीर सावरकर की जीवनी लिखने वाले प्रख्यात लेखक धनंजय कीर लिखते है, “समाज की भलाई के लिए कई बार दो महान लोग एक समय में अलग-अलग कार्य कर रहे होते हैं। इसमें एक व्यक्ति वह होता है, जोकि समाज के भलाई के लिए कष्ट सहन करता है और दूसरा उसकी बेहतरी का बीड़ा उठता है। गाँधी पहली तरह के व्यक्तियों में शामिल थे जबकि सावरकर दूसरी तरह के लोगों का नेतृत्व करते है।”[1] वीर सावरकर के अलावा लोकमान्य तिलक, डॉ. भीमराव आंबेडकर और ज्योतिराव फुले के भी जीवनीकार हैं।
तमस को चीर कर प्रकाश लाने वाला ही पत्रकार है: सुभाष जी
कानपुर. भारत में पत्रकारिता नाम नहीं था। यहां संदेश संप्रेषण शब्द का प्रयोग किया जाता था। आज पत्रकारिता का एक उद्देश्य है। पत्रकार एक योद्धा है, पत्रकार एक साधक है। पत्रकार बिकता नहीं है, पत्रकार ठहरता नहीं है। जो तमस को चीर कर प्रकाश लाता है, वही पत्रकार है। ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी ने विश्व संवाद केंद्र, कानपुर द्वारा बीएनएसडी शिक्षा निकेतन, कानपुर में आयोजित नारद जयंती कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहीं।
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